RANGREJ HISTORY

 रंगरेजों का इतिहास

रंगरेज , नीलगर , लीलगर , छीपा , डायर , सब्बाग


बिहार में रंगरेज बेतिया पश्चिम चम्पारण , मोतिहारी ,पुर्वी चम्पारण , शिवहर, सितामढ़ी, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा, गोपालगंज, सिवान, छपरा, किशनगंज पटना और गया जिले में अधिक रंगरेज रहते हैं।

जातियों का इतिहास 

 1️⃣उदगम:- भारत प्राचीन काल से ही कृषि प्रधान देश है।

हमारे देश में कुछ लोग नील की खेती करने वाले थे। नील को ही अंग्रेजी में इंडिगो कहा जाता है। नील की खेती करने के बाद पौधों को काट कर पानी की बडी होद में गलाया जाता था। पोधो के गल सड जाने के बाद होद में उतर कर हाथो से मथा जाता था। कचरा निकाल कर होद का पानी क्रमश:दुसरी तीसरी होद में छोडकर पानी में घुली नील को नीचे बैठने पर पानी को अगली होद में छोडा जाता था। नीचे नील के पोधो का सत मिलता उसे बट्टियो के रूप में सुखाकर नील तैयार कर लि जाती थी। जो भारतियो के कपडों की ही चमक नही पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन करने (चमकाने) के साथ,साथ भारतीय जनता के खजाने में भी सोने की चमक बढाने का काम करती थी। जेसा कि अर्ज किया कि नील को अंग्रेजी में इंडिगो कहा जाता है। नील का व्यापार यूरोप के देशों से भारतियो रंगरेजों के द्वारा किया जाता था। इसलिए ही नील को इंडिगो नाम दिया गया। नीलगर जाति का उदगम मध्य एशिया में हुआ था क्योंकि यहां पर ही नील की खेती होती थी परंतु भारत के नीलगर ही नील का विदेशी व्यापार करने के लिए उत्पादन करते थे। नीलगरो द्वारा ही जंगल से फूल और कुछ जडी बुटियो से अन्य रंगों को भी बनाया जाता था। इसी लिए रंगरेजों को जड़ी बूटियों की परख बढ़ती गयी और हमारे कुछ पढ़े लिखे पूर्वजों द्वारा जड़ी बूटियों से लोगों का इलाज भी किया जाने लगा जो आज भी प्रचलित है। हमें अपने पूर्वजों पर गर्व है कि उन्होंने सारी दुनिया को अपने रंगों से रंगीन बना दिया।

2️⃣रंगरेज:-रंगरेज़ शब्द फारसी भाषा का है ।

हमारा नील और रंगों का व्यापार पूरी दुनिया में हुआ करता था।इरान, इराक और मिश्र में भी हमारा व्यापार होता था। वहां के लोगों के द्वारा ही हमे रंगरेज कहा जाता था। जिसका अर्थ कपडे रंगने वाले होता है।

3️⃣डायर:- यह शब्द अंग्रेजी भाषा का है।

यूरोप महाद्वीप के लोग हमे डायर कहते थे। जिसका अर्थ रंगरेज(कपडे रंगने वाले) होता है।


4️⃣सब्बाग:- सब्बाग हमें नील की खेती करने वाले थे इसलिए कहा जाता है।

राजस्थान के रंगरेजो ने यहां के लोगों को रंगीला बनाया और आज हम गर्व से कह रहे है रंगीलो राजस्थान। यहां के रंगरेजो की खास कलाकारी में हम निम्न चीजें देखते हैं। 

▪️बंधेज का काम➖ 1चुनरी,2 मोठडा,3 पीलिया, 4पोमचा, 5 मामापुरिया, 6धाट, 7लहरिया, 8 पतगिंया
▪️छपाई का काम➖ 1:-फूल-पत्ती के बेल बूटे 2:-रंगोलीयाॅ 3:-पशु-पक्षी

▪️रंगाई का काम➖

लूगडे, साडी, साफा, पगडी पर कई तरह के कच्चे-पक्के रंगना। सावन के महीने में लहरिया की तो बात ही निराली होती थी। लहरिया रगंते रगंते,सुखाते(हाथ में सुखाते) समय तो पानी की बरसात होने लगती थी। यह था रंगरेजों का हुनर का जादू बसंत के मौसम में बसंती छाटना।कपडे को पीला रंग कर गहरे लाल,गुलाबी रंग के छीटे देकर बहंती कपडा रंगा जाता था।

रंगरेजो की धार्मिक स्थति➖

रंगरेजो के पूर्वज मुशरिक थे।मुहम्मद बिन कासिम के सिंध के राजा दाहिर को पराजित करने के बाद 9वी 10वी शताब्दी में मुस्लिम समुदाय के संपर्क में आने के बाद तथा सूफी संतो से प्रभावित होकर इस्लाम स्वीकार किया। मुसलमान होने के बाद से ही मुशरिको से अलग रिति रिवाज,शादी-विवाह,खान पान,रहन सहन,नाम करण, मोत मय्यत त्योहार, पहनावे आदि में परिवर्तन आता गया।

▪️सामजिक_स्थति➖ हमारा समाज आज मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित है।

1- लीलगर 

2- नीलगर 

3- छीप/छीपा रंगरेज समाज में आज भी पंचायत व्यवस्था प्रचलित है। समाज में एक चुना गया (वरिष्ठ-वयक्ति) समाज का अध्यक्ष होता है समाज के कुछ उलझे हुए मामलो को सुलझाते है। अभी कुछ समय से अदालतो का फैसला कानूनी पेचीदगियों के कारण ही सर्वमान्य होने लगा है फिर भी समुदाय के विकास के लिये चुनी गई पंचायत के अध्यक्ष-अपनी कार्यकारिणी के व समिति के सदस्यो के सहयोग से सब के हितार्थ काम करते हैं।▪️शादी विवाह अपने ही समुदाय में किये जाते हैं। गैर बिरादरी में संबंधो को ठीक नही समझा जाता है। रंगरेजो ने अपने समाज को छीपा मनिहारी आदि अपने ही समाज से निकले लोगों में भी शादी विवाह संबंध मान्य नहीं है।

▪️आर्थिक स्थिति➖

रंगरेज समाज की आर्थिक स्थिति भारत की स्वतंत्रता के समय तक ठीक थी कपडों की मील खुलती गई और केमिकल रंगों से रंगीन कपडे बनने लगे। रंगरेजो को मीलो में काम मिला परंतु धीरे धीरे रंगाई-छपाई-बंधेज के काम धाटे का सोदा होने लगा।रंगरेज लोगों का पुश्तैनी काम लगभग बंद होने के कगार पर पहुंच गया है।कुछ लोग ही इसे कर रहे हैं। अब हमारे समाज के लोगों ने पूरे भारत में अलग अलग तरह के काम करने शुरू कर दिए हैं। जैसे-चूडी,मनिहारी,टेंट, व्यापार, नोकरी,मजदूरी आदि। आज के दौर में रंगरेज़ सरकारी नोकरी में जैसे IS,IAS,PCS,MBBS,BAMS, BUMS,बीएससी नर्सिंग,GNM, ANM, एडवोकेट इंजीनियर जैसे उच्च पदों कार्यरत हैं मगर रंगरेजों में सबसे अधिक टीचर है ओर पुलिस विभाग में भी अलग ,अलग पोस्टों पर काबिज है और दूसरे नम्बर पर डॉक्टर ओर हिक्मत पेशे से लोग आधिक सँख्या में जुड़े हुए हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात मे रंगरेज समाज राजनीतिक दखल रखते हैं मगर रंगीला राजस्थान में रंगरेज समाज हर सरकार में अपनी मजबूत पकड़ रखता है जो आज तक किसी भी सरकार में ढीली नही पड़ी। रंगीला राजस्थान में रंगरेज बी डी सी पार्षद प्रधानी(सरपंच)से लेकर विधायक जैसे सम्मानित पदों को जीत कर राजस्थान में अपना लोहा मनवाया है। रंगरेज़ समाज मे लोग पहले से ही मिलनसार रहे हैं और मिलजुल कर रँगाई भट्टियों पर काम करते रहे हैं और हमेशा समाज के लोगों को आगे बढ़ाने में एक दूसरे का सहयोग करते आये हैं औऱ समाज को एकत्र करने का काम पूरी लगन से हर स्टेट में समाज के लोगो द्वारा आज भी किया जा रहा है जिस का नफा सामने भी आ रहा है इसी कारण आज हर तीसरे रंगरेज़ भाई के नाम के सामने रंगरेज़ लगा देखने को मिल जाता है। आज भी समाज मे छोटे छोटे संगठन और संस्थाएं बनाकर लोगो की मद्द करने का चलन बरकरार है। ओर अलग,अलग राज्यों में समाज मे भिन्न,भिन्न नामो से छोटे,छोटे समूह बनाकर गरीब बच्चे,बच्चीयों की सामुहिक व इस्तामाई शादियां समाज के लोगो व समाज के जिम्मदारों द्वारा कराई जाती रही है ताकि समाज मे किसी भी तरह की गन्दगी या गंदी सोच रखने वाली बहन बेटी या बेटा न बचे। आज भी समाज मे हर स्टेटों में समाज के जिम्मदारों द्वारा यही कोशिश जारी है कि समाज की शादियों में ढोल,ढपडे,नगाड़े डीजे ओर फ़िज़ूल खर्ची पर पाबंदी कायम रहे ओर निकाह को आसान बना रहने दिया जाए।

छीपा,धोबी ओर दर्जी गोत्र

छीपा-दर्जी और धोबी:-हमारे ही कुछ लोगों ने कपडे खरीद कर उन्हे रंगना , छापना, बेचना और सिलकर के बैचना शुरू कर दिया था, इसलिए छीपा और दर्जी भी हमी में से है। हमारे कुछ लोग कपडे धोकर फिर उन्हें रंगने, छापने का काम करते थे।

इस तरह से धोबी, नीलगर, रंगरेज, छीपा,दर्जी और सब्बाग सभी एक ही समुदाय के लोग थे।

जो बाद में काम के हिसाब से इस तरह अलग-अलग हो गए।


▪️नीलगर,लीलगर,सब्बाग,रंगरेज

✔️नील की खेती,नीलऔर रंग बनाने वाले। 
✔️छीपा/छीप-कपडो को रंगना, रंगकर बेल बूटे छापने वाले।
✔️धोबी- कपडे धोकल नील लगाने वाले 
✔️दर्जी:-का काम बादमे केवल कपडे सिलने का ही रह गया

बेहलिम ही मुहम्मद गोरी के समय राजस्थान में आने का दावा करते हैं। भारत की आजादी के समय बहेलियम रंगरेज समुदाय के बहुत से लोग दूसरे देशो में चले गए थे जो अब वहां पर मुहाजिरो में अग्रणी भूमिका अदा करने वाले हैं। 

◾राजस्थान के रंगरेजो में कुछ दावा करते हैं कि मुहम्मद गोरी के समय हम दिल्ली से राजस्थान में आए थे। रंगरेजो का एक गोत्र गोरी भी है। यहां राजस्थान में रंगरेज जयपुर, सीकर, सवाई माधोपुरऔर अलवर जिले में बहुतायत में पाए जाते हैं।

रंगरेज़ समुदाय के कई गोत्र है

गौरी,चोहान,मंडवारिया,आज़मी, वारसी,खोखर,भट्टी,राजपूत,भैंस वाले,बगाडिया,सिंघानिया, सोलंकी, अरबी ,बैरा, बेहलिम आदि बहुत सारे गोत्र लिखे जाते रहे हैं जिनके कारण आज तक रंगरेजों की अक्सीरियत का सही आलंकन नही किया जा सका छीप,छीपा:-हमारे ही कुछ लोगों ने कपडे रंगने के साथ ही उन पर लकडी पर फूल पत्तियों को उकेर कर मुहरें/छापे बनाकर उनकी सहायता से कपडो पर रंगों से छाप लगाने कि काम करने लगे। इस लिए इनको छीप/छीपा कहने लगे।

रंगरेज समुदाय का क्षेत्र➖

रंगरेज़ समुदाय मध्य एशिया में पाया जाता है। इसके अधिक तर लोग पूरे भारत में पाए जाते हैं। भारत की आजादी के बाद कुछ लोग पाकिस्तान में चले गए। औऱ वहां कराची में जाकर बसे है।खासतौर पर वहां मुहाजिर में खास है। इसके अलावा बंगलादेश और टर्की में भी रंगरेज पाए जाते हैं।

◾भारत में रंगरेज़

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड ओडिशा छत्तीसगढ़, दिल्ली,बिहार,राजस्थान,मध्य प्रदेश, गुजरात,महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में भी रंगरेज पाए जाते हैं।

रंगरेज एक दृष्टी में  ▪️आबादी- लगभग कऱोडों में है सही आलंकन न होंने का कारण हमारा गोत्रों में बंटा होंना बताया जाता रहा है

भाषा ➖ उर्दू, क्षेत्रीय, हिन्दी। 
धर्म ➖ इस्लाम। 
मुख्य काम(पुश्तैनी) ➖नील की खेती,नील व रंग बनाना कपडे- रंगना,बंधेजऔर छपाई करना वर्तमान काम-मजदूरी, नोकरी,डॉ व्यापार,टेंट हाउस, मेकेनिकल,चूडियाँ-मनिहार, कपड़ा मील मजदूर व रंगछपाई

◾ सामजिक जीवन➖

पंचायत, स्वजातीय विवाह,अन्य लोगों से मिलनसारिता, व्यवहारिक, मुसलमानों में सर्वाधिक शिक्षित समुदाय भी माना जाता है 

➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

अब्दुल रशीद रंगरेज (प्रोग्राम असिस्टेंट) चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, राजस्थान 
अध्यक्ष्य - जीवन ज्योति सेवा ट्रस्ट
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

Post a Comment (0)